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सुनी-अनसुनी (भाग-08)

अब हर सोमवार पढ़िए दंतेवाड़ा जिले से जुड़ी सुनी-अनसुनी बातें…

वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रकाश संगम और कवि सिन्हा की कलम से…

सडक बना, प्राण ना हर
दंतेवाडा से किरंदुल तक सडक निर्माण कार्य किया जा रहा है। लेकिन इस निर्माणाधीन सडक के चलते पूर्व में चार जाने जा चुकी हैं। सडक हादसे और डायवर्सन बहने की वजह से चार लोगों ने अब तक दम तोड दिया है। इधर इस कंपनी की तैयारी अब भी कुछ ऐसी ही थी लेकिन समय रहते सडक पर निकले सरिया को काट कर अलग कर दिया गया। पुल में लगी सरिया सीधे जमीन से आसमान की ओर इशारा कर रही थी। मतलब अगर सरिया के आसपास भी गिरे तो नीचे नहीं बल्कि उपर चले जाओगे। अब लोग कंस्ट्रक्शन कंपनी से यही दुआ कर रहे है कि रोड बना, प्राण ना हर।

लाशों का ट्रांसफर
शीर्षक पढकर जरूर आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन रविवार को कुछ ऐसा ही हुआ। दक्षिण बस्तर के सबसे बडे अस्पताल में ऐसा कारनामा देखने को मिला। पहले तो अस्पताल प्रबंधन ने लाशों को सुरक्षित रखवाने गीदम और बचेली ट्रांसफर कर दिया। कारण था, अस्पताल के मर्चुरी कूलर्स में तकनीकी खराबी। फिर इसके बाद एंबुलेंस चालक और पिकअप चालक ने भी लाशों के ट्रांसफर का खेल जारी रखा। दोनों चालकों ने एक गाडी से दूसरी गाडी में लाश ट्रांसफर किया। फिर इसके बाद पिकअप चालक ने शव को गांव तक छोडा। पहले तो जीवित व्यक्ति का ट्रांसफर होता था लेकिन अस्पताल के साहब अब मुर्दो का ट्रांसफर करने से भी पीछे नहीं हटते।

कबाड़ियों की बल्ले-बल्ले
बस स्टैंड स्थित पुराना साडा काम्प्लेक्स टूटने के साथ कबाड़ियों की किस्मत खुल गई। जिले के सभी कबाड़ी रात से ही बस स्टैंड में नज़रें जमाए बैठे रहे। सुबह का इंतजार तो दूर रात में ही कबाड़ियों ने टूटे हुए कॉम्लेक्स से रॉड (लोहा) निकालना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि संतोषी मंदिर से थोड़ी दूर ही वेस्ट मटेरियल का डम्प किया गया। इस जगह पर कबाड़ियों की लंबी फ़ौज दिखी। अफवाहें तो यहां तक फैली की कई कबाड़ियों ने पास के अपने रिश्तेदारों को भी लोहा निकालने बुलवा लिया। वैसे भी ऐसा मौका दुबारा मिलने से रहा तो फायदा उठाना तो जरूरी है भाई जी…

हम किसी से कम नहीं
बस्तर के अन्य जिलों में मिल रही सफलताओं के बाद दंतेवाडा पुलिस ने भी आधा दर्जन से ज्यादा नक्सलियों को एक साथ ढेर कर दिया। बडे और इनामी नक्सलियों को मार गिराने के बाद पुलिस काफी उत्साहित है। कुछ समय पहले तक यहां की पुलिस केवल सरेंडर को बढावा दे रही थी, जिससे पुलिस के आउटडोर पफॉमेंस पर सवालिया निशाना लग रहे थे। फिर क्या था, तीनों जिलों के बार्डर में घुसकर जवानों ने आठ माओवादियों को ढेर कर दिया, और साबित कर दिया कि इनडोर के साथ ही आउटडोर में भी हम किसी से कम नहीं।

धूलवाडा में आपका स्वागत है
मांईजी के नगरी को इन दिनों चारों ओर धूल ने घेर रखा है। लोग तो अब शहर का नाम बदलकर धूलवाडा कहने लगे हैं। गीदम से दंतेवाडा की ओर आते है तो धूलवाडा का पहला अहसास रेल्वे फाटक पर होता है। इसके बाद आप बस स्टैंड आकर चाय पीने की सोचते है तो दुबारा आपको धूलवाडा का एहसास होगा। इतना ही नहीं धूल नगरी की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इसके बाद अगर आप किरंदुल रोड चले जाते हैं तो क्या ही कहना। इस तरह से आप शहर का नाम बदल सकते हैं।

जितनी मुँह उतनी बातें
साडा काम्प्लेक्स टूटने के बाद बस स्टैंड में एक बड़ा जगह खाली हो चुका है। अब इस खाली जगह को लेकर शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म है। कोई कह रहा है इसे खाली ही रहने देना चाहिए ताकि गाड़ियों का जाम ना लगे तो कोई कह रहा है शेड लगाकर यात्री प्रतिक्षालय का निर्माण हो और सुनिए एक ने कहा फिर से तीन मंजिला इमारत बनाकर शॉपिंग मॉल बनाना चाहिए। नगर पालिका ने कहा अभी कोई प्लान नहीं है कुछ नया करने का। एक भाई साहब ने कहा नगर पालिका को यात्रियों के लिए लॉज बनवा देना चाहिए ताकि यात्री होटल के तलाश में भटके नहीं। खैर जितनी मुँह उतनी बातें। खाली जगह पर क्या बनेगा ये तो शासन-प्रशासन के लोग ही जानें.

और अंत में…
तालाब को सुंदर बनाने कटेकल्याण को डीएमएफ मद से करीब 17 लाख मिले। उस राशि से तालाब में घाट, पाथवे, गहरीकरण का कार्य करवाया जाना था पर कुछ नहीं हुआ। जब सचिव महोदय से बात हुई तो उन्होंने कहा आप कटेकल्याण खुद आकर देख सकते हैं पूरा काम कंप्लीट होने वाला है बस फाइनल टच देना बाकी है। अब सचिव महोदय को कौन बताए की हम तालाब की फोटो आने के बाद उन्हें फोन घुमाए थे।

Kavi Sinha

संपादक, द दंतेवाड़ा फाइल्स

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