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सुनी-अनसुनी (भाग-01)

अब हर सोमवार पढ़िए दंतेवाड़ा जिले से जुड़ी सुनी-अनसुनी बातें…

वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रकाश संगम और कवि सिन्हा की कलम से…

कैंसिल वाली पेंसिल
दक्षिण बस्तर में अब अफसर कैंसिल वाली पेंसिल लेकर चलने लगे हैं। बीते कुछ सालों से जिले में हालात ऐसे हो चले हैं कि कब काम पर कैंसिल वाली पेंसिल चल जाये, इसका कोई ठिकाना नहीं। इससे पहले वाले अफसर भी कैसिंल कैंसिल कैंसिल की तर्ज पर काम कर रहे थे, और वर्तमान अफसर भी इसी प्रणाली पर आगे बढ रहे हैं। लेकिन बडा फर्क ये है कि पूर्व में कैंसिल निजी हितों के लिये होता था और वर्तमान में कैंसिल सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।

कांटो की नोक से मरहम
विपक्षी दल के नेताओं की छटपटाहट इन दिनों कम नहीं हुई है। कांग्रेस शासन में 2023 के विस चुनाव से पूर्व महोदय कहलाने वाले अफसर ने तो सत्ताधारी नेताओं की छाती पर मूंग दलना शुरू कर दिया था। शासन बदली तो अफसर भी बदले। अफसर के तबादले का जश्न भी मना, लेकिन वो उम्मीदें पूरी नहीं हुई जो होनी चाहिए थी। नेताओं को लग रहा था मानो सत्ता पलट के साथ भाजपा सर्व धर्म समभाव की नीति से काम करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अफसर के तबादले के बाद नेता अपने ईष्ट देव को याद करते यही कह रहे होंगे उसने मेरे जख्मों का इलाज कुछ इस तरह किया, मरहम लगाया भी तो कांटो की नोक से ।

अफ़सर हैं या अंगद के पैर

ज़िले में कुछ अफ़सर अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं। इन्हें न तो निर्वाचन आयोग हटा पाया और न ही सरकार की नज़र इन पर पड़ी है। ऐसा नहीं है कि ये अफ़सर लूप लाइन में रहते है। एक अफ़सर आदिवासियो का विकास करते है तो दूसरे अफ़सर का क्या ही कहना अपने मूल विभाग को छोड़ किसी अन्य विभाग के बॉस बने बैठे है। इस अफ़सर का नादियो और तालाबो से गहरा नाता है। अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर ये नादियो और तालाबो के अस्तित्व को ख़त्म करने की जुगत में लगे रहते है। ख़ैर सरकार किसी की भी ये तीनों अफ़सर ख़ुद को परिस्थितियों में ढाल लेते हैं। इसी हुनर के चलते इनका तबादला आज तक नहीं हो सका है।

कुआँ प्यासे के पास आ गया

जल संसाधन विभाग के कारनामे भी अक्सर सोचने को मजबूर कर देते है। ऐसा ही एक वाक़या बीते दिनों सामने आया था। कटेकल्याण इलाक़े में विभाग ने एक किसान के खेत में ही डैम बनवा दिया। डैम का निर्माण इसलिए किया जाता है ताकि खेतो में पानी पहुँचाया जा सके लेकिन यहाँ विभाग ने प्यासे को कुएँ के पास नहीं भेजा बल्कि कुएँ को ही प्यासे के पास के पास ला दिया । अब किसान ये समझ नहीं पा रहा हैं इस डैम से उसे फ़ायदा हुआ या नुक़सान। डैम बनने के बाद उसका खेत ग़ायब हो गया है। समस्या ये भी आ गई कि अब इस डैम का पानी किस खेत में इस्तेमाल करे।

बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते…
पूर्व विधायक देवती महेंद्र कर्मा व जिला कांग्रेस के महामंत्री विमल सलाम ने 7 मार्च गुरुवार को दंतेवाड़ा के पुराने रेस्ट हाउस को विधायक निवास बनाने पर आपत्ति जताई। कांग्रेसियों ने यह आपत्ति कुछ महीने पहले की होती तो शायद यह निर्माण कार्य रुक सकता था पर अब बहुत देर हो चुकी है और निर्माण कार्य अब पूर्णता की ओर है… विरोध की खबर छपने के बाद जिलेवासी कहते नज़र आए बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते…

हम डाल डाल तुम पात-पात

जिले में एक समय प्रशासनिक आतंकवाद का पर्याय बन चुके महोदय और छोटे महोदय की पेवेलियन वापसी हो चुकी है। बडे राजधानी में तो छोटे जिला मुख्यालय में डटे हुए हैं। दोनों ही शक्तिविहीन हो चुके हैं, दोनों की सारी शक्तियां क्षीण हो गयी हैं। लेकिन दोनो जिस जगह पर डटे हुए है वहां एक बडी समानता देखने को मिल रही है। दोनों ही महोदय अब फाईले ढोने और खगालने जैसे काम करने में जुटे हुए हैं। पहले बडे महोदय राजधानी में फिर हम डाल डाल तुम पात पात की तर्ज पर छोटे महोदय को भी वही काम धराया गया जो राजधानी में बडे महोदय कर रहे हैं। कभी दोनों महोदय अपने इर्द गिर्द चतुरंगी सेना लेकर घूमते थे, लेकिन अब दोनों दूसरे सेनापतियों की चतुरंगी सेना का हिस्सा बनकर रह गये हैं।ख़ैर , समय बड़ा बलवान होता है ।

 

Kavi Sinha

संपादक, द दंतेवाड़ा फाइल्स

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