सुनी-अनसुनी (भाग-02)

अब हर सोमवार पढ़िए दंतेवाड़ा जिले से जुड़ी सुनी-अनसुनी बातें…
वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रकाश संगम और कवि सिन्हा की कलम से…
नागलोक में मचा हडकंप
दक्षिण बस्तर में एक विभाग के अफसरों और ठेकेदारों को इन दिनों मानो नाग यानी कोबरा ने डंस लिया हो, हालत ऐसी कि बडे अफसरों के सवालों का जवाब देने में पसीना छूटने लगा है। कुछ जगहों पर ठेकेदार की कारगुजारियां तो कुछ जगह अफसरों की कारस्तानियां दोनों एक दूसरे को चैन से रहने नहीं दे रही। इधर नाग रूपी पूर्व अफसर के डंसने के बाद वर्तमान अफसर कर्मी कभी झाड फूंक, कभी जडी बूटी तो कभी एंटी स्नेक वेनम के जुगाड में लगे है। जिन अफसर की तबियत बिगडनी शुरू हो गयी है वो तबादले की जुगाड भी जमाने लगे हैं। ठेकेदार और अफसर तो पानी यानी राहत के लिये छटपटाने लगे है, लेकिन किसी ने सही कहा है नाग का डंसा, पानी नहीं मांगता। वैसे भी सालों तक इस विभाग में कोबरा रूपी अफसर ने ही कब्जा जमा रखा था, जहर कहां कहां छोडा, अब एहसास होने लगा है।
महोदयों की सुपर लैंडिंग
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विवादों से घिरे रहने वाले महोदय की सुपर लैंडिंग मलाईदार विभाग में हो चुकी है। इसके साथ ही छोटे महोदय भी फिलहाल मांईजी की नगरी को अलविदा कह चुके हैं। छोटे महोदय ने जिस जगह लैंड किया वो जिला आर्थिक रूप से प्रदेश के सबसे सशक्त जिलो में शुमार है। छोटे महोदय ने पहले सेफ लैंडिंग कर ली। कयास लगाया जा रहा है कि बडे महोदय भी आने वाले कुछ महीनों में यहां जिले की कमान संभाल सकते हैं। छोटे महोदय की लैंडिंग को मैच से पहले पिच रिपोर्ट देने वाले के रूप में देखा जा रहा है। इसके बाद ही ये तय हो पायेगा कि जिले में मैच खेला जा सकता है या नहीं। वहीं टॉस जीतकर बल्लेबाजी या गेंदबाजी का फैसला भी पिच रिपोर्ट पर ही निर्भर करता है। छोटे महोदय रूपी पिच रिपोर्टर द्वारा ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद बडे महोदय रूपी बल्लेबाज बतौर कप्तानी पारी संभालने मैदान में उतरेंगे और एक बार फिर ताबडतोड बल्लेबाजी का नमूना भी पेश कर सकते हैं, जैसा उन्होने पूर्व में पेश किया है। फिलहाल पिच रिपोर्ट के बाद बल्लेबाजी के लिये आचार संहिता हटने के साथ ही और भी औपचारिकताएं पूरी करनी पडेंगी।
लिट्टन के आगे सब बेबस…
विगत महीने भर पूर्व भास्कर दवाखाने के संचालक लिट्टन विश्वास द्वारा चंदेनार के परदेशी को इंजेक्शन लगाया गया था, जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई। घटना की जानकारी मिलते ही जिपं अध्यक्ष तुलिका कर्मा द्वारा परिजनों के साथ मिलकर लिट्टन के खिलाफ अपराध दर्ज करने आवेदन भी दिया। लिट्टन की पहुँच ऐसी की घटना को करीब महीने भर से ज्यादा का समय हो गया पर स्वास्थ्य विभाग और पुलिस विभाग उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है… ये पहली बार नहीं है इससे पहले भी लिट्टन दो से तीन जान ले चुका है पर लिट्टन के पहुँच के आगे सब बेबस हैं…
मंडई ईलो रे…
दंतेवाड़ा जिला के प्रसिद्ध फागुन मंडई का आगाज हो चुका है पर इस बार इसकी रंगत में खलल डालने आचार संहिता भी पहुँच चुका है… आचार संहिता के कारण नेता मंडई की बधाई के बैनर-पोस्टर नहीं लगा पा रहे हैं तो वहीं प्रशासन वॉल पेंटिंग को हटाने में लगी है… फागुन मंडई में दुकान लगाने पहुँचे छोटे व्यापारी रेलिंग की वजह से इधर-उधर भटकते नज़र आ रहे हैं साथ ही मेला के स्थल में परिवर्तन के बाद शांति से मंडई निपटाना प्रशासन के लिए बड़ी जिम्मेदारी रहेगी…
बैलाडीला की सडक भी बैलाडीला जैसी
बैलाडीला का नामकरण बैल का डीला यानी कंधे के उभरा हुए हिस्से की आकृति की वजह से होना बताया जाता है, उंची और उबड खाबड जैसी आकृति यहाँ के पहाडियों की भी है। इधर बैलाडीला जाने वाली सडक की हालत भी बीते एक साल से ज्यादा समय से ऐसी ही हो चली है। बैल के डीला की तरह सडक भी कहीं उंची, कहीं नीची तो कहीं उबड खाबड हो चुकी है। बस्तर के बाहर से पहुंचे हुए लोग बैलाडीला की पहाडियों को निहारे बिना ही इस सडक पर आवाजाही कर ये कहने लगे हैं कि हमने बैलाडीला की पहाडियों में अपनी गाडी भी चला ली। जवाब सुन लोग हैरान जरूर हो रहे हैं कि भला ये कैसे संभव है। वैसे राहगीर ये स्पष्टीकरण देने से पीछे नहीं हट रहे कि बैलाडीला जाने वाली सडक भला पहाडियों से क्या कम है।
और अंत में…
पिछले कॉलम में हमने अफसर हैं या अंगद पैर के शीर्षक से व्यंग प्रकाशित की थी, जिसके बाद अंगद की तरह पैर जमाकर बैठे एक अफसर की रवानगी पड़ोसी जिले में हो गई। रवानगी आदेश पहुँचते ही अफसर के चाहने वाले सीधे उनके घर पहुँचने लगे और घड़ियाली आंसू भी बहाने से पीछे नहीं हटे, आदेश के दूसरे दिन अफसर के घर के सामने गाड़ियों की लंबी लाइन दिखी ये भीड़ अपना चेक कटवाने के लिए थी या अफसर से मुलाक़ात के लिए, ये तो भगवान ही जाने पर, हमारे कॉलम के पहले अंक ने अपना काम कर दिया…